आर्यभट संख्या प्रणाली

उदाहरण: ख्युघृ | चयगियिङुशुछ्लृ | मखि
4320000 | 57753336 | 225

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आर्यभट को एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता थी जो खगोल विज्ञान की विशाल संख्याओं को उनके काव्यात्मक ग्रंथ के प्रारूप में संक्षिप्त, स्मरण में सरल और एकीकृत तरीके से प्रस्तुत कर सके।

आर्यभट ने संस्कृत वर्णमाला का उपयोग करके एक नई वर्णांक या अक्षरांक पद्धति को जन्म दिया। संस्कृत व्याकरण के विशिष्ट शब्दों का उपयोग करके आर्यभट ने अपनी नई अक्षरांक-पद्धति के सारे नियम एक श्लोक में भर दिए। ग्रंथ के आरंभ में ही अपनी नई अक्षरांक पद्धति को प्रस्तुत कर देने के बाद आर्यभट अब बड़ी-बड़ी संख्याओं को अत्यंत संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत रूप में रखने में समर्थ थे।

वर्गाक्षराणि वर्गेऽवर्गेऽवर्गाक्षराणि कात् ङ्गौ यः ।
खद्विनवके स्वरा नव वर्गेऽवर्गे नवान्त्यवर्गे वा ॥

-आर्यभटीय गीतिकापाद २

अर्थात् क से प्रारंभ करके वर्ग अक्षरों को वर्ग स्थानों में और अवर्ग अक्षरों को अवर्ग स्थानों में (व्यवहार करना चाहिए), (इस प्रकार) ङ और म का जोड़ य (होता है)। वर्ग और अवर्ग स्थानों के नव के दूने शून्यों को नव स्वर व्यक्त करते हैं। नव वर्ग स्थानों और नव अवर्ग स्थानों के पश्चात् (अर्थात् इनसे अधिक स्थानों के उपयोग की आवश्यकता होने पर) इन्हीं नव स्वरों का उपयोग करना चाहिए।

उदाहरण:
आर्यभट ने विभिन्न ग्रहों की परिक्रमा में लगने वाले समय का वर्णन किया है

युगरविभगणाः ख्युघृ , शशि चयगियिङुशुछ्लृ , कु ङिशिबुण्लृष्खृ प्राक्।।
शनि ढुङ्विघ्व , गुरु ख्रिच्युभ , कुज भद्लिझ्नुखृ, भृगुबुधसौराः।।

ज्या सारिणी २२५

मखि भखि फखि धखि णखि ञखि , ङखि हस्झ स्ककि किष्ग श्घकि किघ्व
घ्लकि किग्र हक्य धकि किच, स्ग श्झ ङ्व क्ल प्त कलार्ध्ज्या।।

225 | 224 | 222 | 219 | 215 | 210 | 205 | 199 | 191 | 183 | 174 | 164 | 154 | 143 | 131 | 119 | 106 | 93 | 79 | 65 | 51 | 37 | 22 | 7